जम्मू-कश्मीर के कठुआ में 3 जगह बादल फटा:7 लोगों की मौत, कई घायल; हिमाचल के कुल्लू में भी बादल फटने से तबाही


 कठुआ और कुल्लू में बादल फटने से मची तबाही: कुदरत के कहर ने छीनी 10 से ज़्यादा जानें


प्रकृति जब अपना रौद्र रूप दिखाती है तो इंसान की तमाम तैयारियां और आधुनिक तकनीक भी बेबस नज़र आती हैं। जम्मू-कश्मीर और हिमाचल प्रदेश जैसे पहाड़ी इलाकों में हर साल बरसात का मौसम अपने साथ कई खतरे लेकर आता है। इस बार भी ऐसा ही हुआ। ताज़ा घटनाओं में जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले और हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में बादल फटने की घटनाओं ने तबाही मचाई है। इन हादसों में अभी तक 7 लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी है, जबकि कई लोग गंभीर रूप से घायल बताए जा रहे हैं।


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कठुआ में तीन जगह बादल फटा, सात की मौत


कठुआ जिले के अलग-अलग हिस्सों में एक साथ तीन जगह बादल फटने की खबर ने पूरे इलाके को दहशत में डाल दिया। अचानक हुई मूसलाधार बारिश ने देखते ही देखते नाले-नदियों को उफान पर ला दिया। तेज़ बहाव में कई लोग बह गए, जिनमें से सात की मौत हो गई। कई घरों और दुकानों में पानी घुस गया। स्थानीय प्रशासन और राहत बचाव टीमें तुरंत मौके पर पहुंचीं, लेकिन ऊंचे-नीचे इलाकों और लगातार बरसात की वजह से रेस्क्यू ऑपरेशन में बड़ी मुश्किलें आईं।


स्थानीय लोगों का कहना है कि रात के समय अचानक पानी का सैलाब आया। चारों तरफ सिर्फ चीख-पुकार सुनाई दे रही थी। लोग अपने परिवार और बच्चों को बचाने के लिए इधर-उधर भागते नज़र आए। कई गाड़ियां पानी के बहाव में फंस गईं। खेतों और बगीचों को भी भारी नुकसान हुआ।


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कुल्लू में भी कहर, मकान और सड़कें तबाह



इसी के साथ हिमाचल प्रदेश का कुल्लू जिला भी इस प्राकृतिक आपदा से अछूता नहीं रहा। यहां भी बादल फटने की वजह से कई जगह भारी तबाही हुई है। पहाड़ों से अचानक आए मलबे और पानी ने घरों को निगल लिया। कई सड़कें टूट गईं, जिससे यातायात बुरी तरह बाधित हो गया। गांवों का आपसी संपर्क टूट गया और लोग राहत-सामग्री के इंतज़ार में फंसे हुए हैं।


कुल्लू के पहाड़ी इलाकों में रहने वाले लोगों ने बताया कि बारिश के बाद अचानक जमीन हिलने जैसी आवाज़ आई और कुछ ही मिनटों में पूरा इलाका पानी और पत्थरों से भर गया। कई परिवारों को अपनी जान बचाने के लिए ऊंचे स्थानों पर भागना पड़ा।


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बादल फटना आखिर होता क्या है?


बादल फटने को समझना बेहद ज़रूरी है। यह तब होता है जब बहुत कम समय में एक ही जगह पर अत्यधिक बारिश हो जाती है। आमतौर पर यह पहाड़ी इलाकों में देखा जाता है। जब बादलों में नमी भर जाती है और वह अचानक फटकर जमीन पर गिरती है, तो थोड़े से समय में इतना पानी बरसता है कि नाले और छोटी नदियां भीषण बाढ़ में बदल जाती हैं।


वैज्ञानिकों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन (Climate Change) और पहाड़ों पर हो रहे अनियंत्रित निर्माण कार्य इस समस्या को और बढ़ा रहे हैं। जंगलों की कटाई, पहाड़ी ढलानों को काटकर सड़कें और होटल बनाने से मिट्टी का संतुलन बिगड़ता है, जिससे बादल फटने के बाद पानी और मलबा रुक नहीं पाता और नीचे के इलाकों में भारी तबाही मचाता है।


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प्रशासन की चुनौती और राहत कार्य


कठुआ और कुल्लू दोनों जगहों पर प्रशासन अलर्ट पर है। एनडीआरएफ (NDRF), स्थानीय पुलिस और प्रशासन लगातार रेस्क्यू ऑपरेशन में जुटे हैं। घायल लोगों को नज़दीकी अस्पतालों में भर्ती कराया गया है। कई जगह फंसे लोगों को निकालने के लिए हेलिकॉप्टर की भी मदद ली जा रही है।


हालांकि राहत कार्यों में दिक्कतें भी आ रही हैं। टूटी सड़कों और लगातार हो रही बारिश की वजह से बचाव दलों को आगे बढ़ने में मुश्किल हो रही है। इसके बावजूद स्थानीय लोग और प्रशासन मिलकर पीड़ितों की मदद करने की कोशिश कर रहे हैं।


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लोगों में दहशत, डर के साए में ज़िंदगी


इन घटनाओं के बाद इलाके के लोग काफी दहशत में हैं। हर साल होने वाली इन आपदाओं ने लोगों की ज़िंदगी को बेहद मुश्किल बना दिया है। कई परिवार अब भी अपने लापता सदस्यों की तलाश कर रहे हैं। बच्चों और बुजुर्गों की सुरक्षा को लेकर चिंता बढ़ गई है।


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सबक और चेतावनी


बार-बार हो रही इन घटनाओं से यह साफ हो गया है कि हमें अब प्रकृति के साथ खिलवाड़ बंद करना होगा। पहाड़ों को काटकर बनाए जा रहे होटल और अवैध निर्माणों पर रोक लगानी होगी। सरकार को ऐसी घटनाओं के लिए मजबूत चेतावनी सिस्टम और आपदा प्रबंधन योजना तैयार करनी होगी।


यह हादसा सिर्फ जम्मू-कश्मीर और हिमाचल तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे देश के लिए चेतावनी है कि जलवायु परिवर्तन की वजह से आने वाले दिनों में ऐसी घटनाएं और बढ़ सकती हैं।


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निष्कर्ष


कठुआ और कुल्लू में बादल फटने की यह त्रासदी हमें याद दिलाती है कि इंसान चाहे कितना भी आगे बढ़ जाए, प्रकृति के सामने हमेशा छोटा ही रहेगा। इस समय ज़रूरी है कि हम न केवल पीड़ितों की मदद करें, बल्कि आने वाले समय में ऐसी घटनाओं से बचने के लिए गंभीर कदम उठाएं।


👉 यह आपदा सिर्फ एक हादसा नहीं है, बल्कि एक चेतावनी है कि हमें अपने पर्यावरण और प्राकृतिक संसाधनों की रक्षा

 करनी ही होगी, वरना कुदरत का यह कहर और भी बड़ा रूप ले सकता है।

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